UBreathe: NASA रिसर्च से मिला 'ब्रीदिंग रूट' का आइडिया, शुरू किया ये Startup, अब 500 पौधों का काम कर रहा एक पौधा
स्टार्टअप 'अरबन एयर लैब्स' ने अपने ब्रांड यूब्रीद (UBreathe) के तहत एक ऐसी तकनीक बनाई है, जिसमें पौधों की जड़ों के जरिए हवा शुद्ध होती है. आपको जानकर हैरानी होगी कि इनकी खास तकनीक के साथ सिर्फ एक पौधा ही 500 पौधों जितनी हवा को शुद्ध कर देता है.
पिछले कुछ सालों से प्रदूषण (Pollution) एक बड़ी समस्या बन चुका है. जैसे ही ठंड की शुरुआत होती है, राजधानी दिल्ली तो जैसे एक गैस चेंबर में बदल जाती है. हर तरफ स्मॉग फैल जाता है और हर कोई घरों में एयर प्यूरिफायर लगाने की सलाह देता है. आज के वक्त में बहुत सारे स्टार्टअप हैं जो हवा को शुद्ध करने के इस बिजनेस में हैं, लेकिन हवा को शुद्ध करने वाला एक ऐसा भी स्टार्टअप है, जिसका प्रोडक्ट आपके घर में हरियाली ला देगा. यहां हम बात कर रहे हैं स्टार्टअप 'अरबन एयर लैब्स' की, जिसने अपने ब्रांड यूब्रीद (UBreathe) के तहत एक ऐसी तकनीक बनाई है, जिसमें पौधों की जड़ों के जरिए हवा शुद्ध होती है. आपको जानकर हैरानी होगी कि इनकी खास तकनीक के साथ सिर्फ एक पौधा ही 500 पौधों जितना ताकवर हो जाता है. यानी जितनी हवा 500 पौधे मिलकर शुद्ध करते हैं, उतनी हवा सिर्फ एक ही पौधा शुद्ध कर देता है.
नासा की रिसर्च ने दिया आइडिया
अरबन एयर लैब्स की नींव वैसे तो 2018 में पड़ी, लेकिन लगभग 20 साल पहले ही इस कहानी का बीज बोया जा चुका था. हम बात कर रहे हैं 1980 के दशक की, जब नासा ने एक रिसर्च पब्लिश की थी. नासा स्पेस शटल के लिए एक ऐसी तकनीक बनाना चाहता था, जिससे एयर प्यूरिफायर के फिल्टर को बार-बार बदलने की जरूरत ना पड़े. उसके बाद ये बात सामने आई कि करीब 15-20 ऐसे पौधे हैं, जिनमें प्रदूषण कम करने की क्षमता होती है. ये पौधे प्रदूषित हवा को अपने अंदर खींच लेते हैं और साफ हवा छोड़ते हैं. नासा की उस रिपोर्ट पर करीब दो दशकों तक तो कोई काम नहीं हुआ, लेकिन फिर संजय मौर्य ने अपने 3 दोस्तों के साथ मिलकर अरबन एयर लैब्स की शुरुआत की और यूब्रीद पर काम करना शुरू किया.
कैसे काम करती है ब्रीदिंग रूट्स टेक्नोलॉजी?
जब 2018 में अरबन एयर लैब्स की शुरुआत की, उस वक्त कंपनी के को-फाउंडर संजय मौर्य, अखिल गुप्ता, अक्षय गोयल और इंद्रजीत राव थे. हालांकि, करीब साल भर बाद ही संजय के अलावा बाकी सभी फाउंडर्स ने एडवाजरी रोल में जाने का फैसला किया. अब संजय मौर्य अकेले ही इस कंपनी के फाउंडर हैं, जो इस खास तकनीक को आगे बढ़ा रहे हैं. संजय जब अपनी टीम के साथ इस पर रिसर्च कर रहे थे, तब उन्होंने यह समझा कि कैसे तमाम पौधे हवा को साफ करते हैं. वह ये जानना चाहते थे कि अरबन और मेट्रो सिटी में कुछ कर सकते हैं या नहीं. उन्हें रिसर्च में पाया कि पौधों में फाइटो रेमेडिएशन प्रोसेस होती है. यहां फाइटो का मतलब है पौधा और रेमेडिएशन मतलब है सॉल्यूशन यानी उपाय. इसके तहत पौधों की जड़ों के आस-पास कुछ खास माइक्रोऑर्गेनिज्म बन जाते हैं. जैसे ही प्रदूषित हवा वहां पर पहुंचती है तो ये माइक्रोऑर्गेनिज्म हानिकारक गैसों को अच्छी गैसों में तोड़ देते हैं और ईकोफ्रेंडली तरीके से हवा शुद्ध हो जाती है. यह सब ब्रीदिंग रूट्स टेक्नोलॉजी के जरिए होता है. अब तक कंपनी ने 6 पेटेंट फाइल किए हैं, जिनमें से 1 पेटेंट मिल चुका है, बाकी पेंडिंग हैं.
हर साल 5-10 गुना बढ़ रहा टर्नओवर
TRENDING NOW
Retirement Planning: रट लीजिए ये जादुई फॉर्मूला, जवानी से भी मस्त कटेगा बुढ़ापा, हर महीने खाते में आएंगे ₹2.5 लाख
SIP Vs PPF Vs ELSS: ₹1.5 लाख निवेश पर कौन बनाएगा पहले करोड़पति? जानें 15-30 साल की पूरी कैलकुलेशन, मिलेंगे ₹8.11 Cr
सरकारी ग्रांट और खुद के पैसे मिलाकर संजय ने अपने दोस्तों के साथ इस बिजनेस को शुरू किया. शुरुआती 3 सालों में इस स्टार्टअप ने करीब 1 करोड़ रुपये कमाए. उसके बाद से अब तक यह आंकड़ा साल दर साल 5-10 गुना की स्पीड से बढ़ रहा है. संजय बताते हैं कि यह एक डीपटेक वाला बिजनेस है, जिसमें शुरू में टेक्नोलॉजी और रिसर्च पर काफी पैसा खर्च होता है, इसकी वजह से उससे रेवेन्यू देखने को नहीं मिलता है. वहीं जब टेक्नोलॉजी तैयार हो जाती है तो फिर बिजनेस में हॉकी स्टिक ग्रोथ देखने को मिलती है.
दो कैटेगरी में होता है बिजनेस
यह स्टार्टअप दो केटैगरी में बिजनेस करता है. पहला है रिटेल प्रोडक्ट कैटेगरी, जिसके तहत पूरे देश में कंपनी के प्रोडक्ट डिलीवर किए जाते हैं. इसके तहत कंपनी ने करीब 7-8 तरह के प्रोडक्ट डेवलप किए हैं. इसमें एक छोटे कमरे से लेकर एक हॉल तक में रखे जाने वाले अलग-अलग तरह के और अलग-अलग कीमत के प्रोडक्ट शामिल हैं. वहीं दूसरा है कंसल्टिंग प्रोजेक्ट, जिसके तहत एयर क्वालिटी मैनजमेंट सर्विस सीधे क्लाइंट्स को दी जाती है. इसमें कॉरपोरेट ऑफिस, मैन्युफैक्चरिंग सेटअप, मैकेनिकल या कैमिकल इंडस्ट्री की फैक्ट्रियों को सीधे सर्विस दी जाती है. क्लाइंट्स के पास जाकर उन्हें स्पेशल सॉल्यूशन मुहैया कराया जाता है.
चुनौतियां भी कम नहीं
संजय बताते हैं कि यह अभी ग्रोइंग सेगमेंट है. यह दिक्कत तो बहुत बड़ी है, लेकिन अभी तक इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है. संजय का कहना है कि जिस तरह कोविड पर कोई एक साथ आ गया था, वैसे ही वायु प्रदूषण के मामले में भी करने की जरूरत है, तभी इससे निपटा जा सकता है. इसके बारे में लोगों को जागरूक करना एक बड़ी चुनौती, क्योंकि कम ही लोग इसके बारे में जानते हैं. अभी कीमत भी एक चुनौती जैसी है, जिसे कम करने की कोशिश की जा रही है. संजय का कहना है कि जल्द ही 10-15 हजार रुपये की रेंज में वह एयर प्यूरिफिकेशन वाला प्रोडक्ट लाएंगे. अभी कंपनी के प्रोडक्ट्स की कीमत 40 हजार रुपये तक है.
यूनीक सोच के लिए मिल चुके हैं कई अवॉर्ड और ग्रांट
यूब्रीद को सबसे बड़ा ग्रांट मिला है साइंस एंड टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट की तरफ से. यह था बायोटेक इग्निशन ग्रांट, जिसके तहत हर साल 10-20 स्टार्टअप चुने जाते हैं. यूब्रीद को इस ग्रांट के तहत 50 लाख रुपये की मदद मिली थी. जून 2021 में ही यह स्टार्टअप Innovative solutions for indoor air pollution problems चैलेंज में विजेता बना था. मई 2021 में कंपनी ने आईआईपी रोपड़ के साथ पार्टनरशिप भी की, जिसके तहत भारत में प्रदूषण को लेकर पौधे पर आधारित समाधान निकालने के लिए एक लैब की शुरुआत की गई है.
कितनी मिल चुकी है फंडिंग?
कंपनी को कुल मिलाकर 1.30 करोड़ रुपये का ग्रांट मिल चुका है. शार्क टैंक इंडिया के सीजन 2 में भी यह स्टार्टअप आया था. वहां शार्क नमिता थापर ने 5 फीसदी इक्विटी के बदले 50 लाख रुपये दिए थे और 1 करोड़ रुपये 10 फीसदी ब्याज दर पर कर्ज दिया था. हालांकि, बाद में कंपनी ने उस डील के साथ आगे बढ़ने से मना कर दिया था. अब संजय बताते हैं कि उन्हें एक प्री-सीड राउंड कमिटमेंट मिल चुकी है, जिसके तहत कंपनी 1 करोड़ रुपये जुटाने के आखिरी चरण में है.
क्या है फ्यूचर प्लान?
संजय बताते हैं कि टेक्नोलॉजी का एक साइकिल पूरा हो चुका है. अब अगले 2-3 साल में वह मार्केट फिट ढूंढने की कोशिश करेंगे. इसके तहत वह मार्केट कैटेगरी और टारगेट ऑडिएंस को समझना चाहते हैं. साथ ही सेल्स चैनल, मार्केटिंग चैनल सब कुछ अगले दो सालों में कवर करना है. हाल ही में वह जो फंडिंग उठाने वाले हैं, उसका इस्तेमाल भी मार्केट फिट के लिए होगा.
तो 'सस्ता' एयर प्यूरिफायर लें या यूब्रीद?
अगर बात दिल्ली-एनसीआर की करें तो यहां अधिकतर वक्त प्रदूषण का लेवल गंभीर बना रहता है. ऐसे में आपको हर 3 महीने में एयर प्यूरिफायर के हेपा फिल्टर को बदलने की जरूरत होती है. संजय दावा करते हैं कि अगर हेपा फिल्टर वाला प्यूरिफायर कोई लेता है तो वह पूरी लाइफटाइम में प्यूरिफायर की कीमत से 8-10 गुना अधिक पैसा खर्च कर देता है, क्योंकि फिल्टर ही प्यूरिफाइयर की सबसे महंगी चीज होते हैं. वहीं अगर लोग यूब्रीद के प्रोडक्ट लेते हैं तो वह पहली बार में तो महंगे पड़ते हैं, लेकिन बाद में उस पर कोई खर्च नहीं है, सिवाय पौधे को मेंटेन करने के. यानी आपको बस पौधे को खाद-पानी देना होगा और वह कई सालों तक चलेगा. अगर पौधा खराब भी हो जाता है तो यह काफी सस्ता पड़ता है, जिसे आसानी से बदला जा सकता है. वहीं हेपा फिल्टर खराब होने के बाद कूड़े के ढेर में पहुंच जाते हैं, जिसे डीग्रेड होने में 30-50 साल लगते हैं. इस नजरिए से भी यूब्रीद बेहद ईको-फ्रेंडली है, इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है.
08:00 AM IST